हाय- हमरी कसम है
मितवा, सन्देस ना पठईहों,
बिछुआ की कसम हमको, तो
से मिलन ना अईहों. हमरी..
कल थीं झुकी जो
अँखियाँ,
चोली भी मसकी कखियाँ,
सब बूझ गईं सखियाँ-
बगिया की कहि न जईहों. हमरी...
अब पोतूं नहीं मैं
कजरा- जूडा न बांधूं गजरा,
मेंहदी रचूंगी न
ज़रा- नथ नाक ना लगईहों. हमरी...
जो तोसे मिलन ना आई-
ना समझो जी पराई,
बस, बाली
उमर दुहाई- तोहरी बलईयाँ लईहों. हमरी...
है बात बात दूई बरस
की, मोह पे समझ- तरस की,
नईहर से मै जो टसकी, कुछ
ना कसर उठईहों. हमरी...
***
achi hai
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