शनिवार, मार्च 24, 2012

हमरी कसम है मितवा

हाय- हमरी कसम है मितवा, सन्देस ना पठईहों,
बिछुआ की कसम हमको, तो से मिलन ना अईहों. हमरी..

कल थीं झुकी जो अँखियाँ, चोली भी मसकी कखियाँ,
सब बूझ गईं सखियाँ- बगिया की कहि न जईहों. हमरी...

अब पोतूं नहीं मैं कजरा- जूडा न बांधूं गजरा,
मेंहदी रचूंगी न ज़रा- नथ नाक ना लगईहों. हमरी...

जो तोसे मिलन ना आई- ना समझो जी पराई,
बस, बाली उमर दुहाई- तोहरी बलईयाँ लईहों. हमरी...

है बात बात दूई बरस की, मोह पे समझ- तरस की,
नईहर से मै जो टसकी, कुछ ना कसर उठईहों. हमरी...
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