शीशा चटक गया!
बेदाग़ हुस्न देखना- इतना खटक गया,
चेहरा
तुम्हारा देखके - शीशा चटक गया.
उड़ते हुए बादल ने जो- निगाह ईधर की,
जुल्फें
तुम्हारी देखने, नीचे लटक गया.
छत पर से तेरा झांकना, कैसा हुआ
गज़ब,
वो इमाम जाते-जाते- रस्ता भटक गया.
दिखा रहा था, देखो- आफताब जो चमक,
परदे में
बादलों के- वो अभी सटक गया.
यह झील सी आंखे जो समन्दर ने देख लीं,
दरिया को बेखुदी में वो- हौले गटक गया.
भंवरा जो सो रहा था- आगोश में कली
की,
एक फूल देख के ‘नज़र’- फिर से मटक गया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपने कहा-