बुधवार, मार्च 21, 2012

शीशा चटक गया!


शीशा चटक गया!

बेदाग़ हुस्न देखना-   इतना खटक गया, 
चेहरा तुम्हारा देखके - शीशा  चटक गया.
उड़ते हुए बादल ने जो- निगाह ईधर की, 
जुल्फें तुम्हारी देखने, नीचे लटक गया.
छत पर से तेरा झांकना, कैसा हुआ गज़ब, 
वो इमाम जाते-जाते-  रस्ता भटक गया. 
दिखा रहा था, देखो- आफताब जो चमक, 
परदे में बादलों के- वो अभी सटक गया.
यह झील सी आंखे जो समन्दर ने देख लीं, 
दरिया को बेखुदी में वो-  हौले गटक गया.
भंवरा जो सो रहा था- आगोश में कली की, 
एक फूल देख के ‘नज़र’- फिर से मटक गया.

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