खरिहान
कविताएं- केशव 'कहिन' और ग़ज़लें- के 'नज़र' के नाम से
बुधवार, मार्च 21, 2012
बैठे हों दिल के कोने में
बैठे हो दिल के कोने में
रोक लेता हूं,
छत तक जाती चीखें,
खींच लाता हूं –
पेड़ की फुनगी तक उठी आहें.
और, बाहर भी आ जाता हूं-
मीलों फ़ैली उदासी की चादर से.
पर,
तुम्हें छू नहीं सकता.
तुम बैठे हो,
कोने में-
दिल के
!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपने कहा-
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपने कहा-