बताना तो-
उधर कितनी देर तक चमेली महकती रहती है,
और,
क्या अब भी हवा वैसी ही शरारतें करती
है,
उड़ा देना तुम्हारी लटों को?
जानता हूं-
तुम नहीं भूलतीं,
उन्हें बार-बार सम्हालते रहना,
और...
इधर तो धूप ही नहीं निकलती,
बिचारी सुबह कुनमुनाती रहती है-
अपनी नाक फुलाए,
और,
बगल में दबाए,
दिन भर की लानतों की फेहरिश्त!
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