गोया, बारिश- ओ- हवाओं का इक बहाना था,
ख़म
थे जुल्फों मे कि, इस
दिल को उलझ जाना था.
पड़तीं
बारिश की वो बून्दें, उनके
गरमाए बदन पे,
जैसे
पानी को खुद- प्यासे पे चले आना था.
क्या
पता थी क्या जगह, कैसे कहें कि क्या हुआ,
दोनों
हम ख़ुद भी कहाँ थे, ये
किसने जाना था.
मिलना
वो दो रूहों का- इतना तो आसां न था,
फासले
आगे थे और, पीछे ये जमाना था.
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