खरिहान
कविताएं- केशव 'कहिन' और ग़ज़लें- के 'नज़र' के नाम से
शनिवार, जुलाई 28, 2012
अल्लाह पे भरोसा कर!
निकला जैसे ही-
अपने घर से आफताब
,
आ
,
रौशनी खड़ी हुई-
गुलाब की कली पर.
मुकम्मिल नहीं थे
,
रंग
,
जिसके अभी तक.
फिर-
जाग गयीं फौरन
,
ओस की वो बूँदें.
और
,
चलने लगीं नीचे-
खुदा हाफिज
,
मेरी बच्ची
,
अल्लाह पे भरोसा कर!
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