शनिवार, जुलाई 28, 2012

अल्लाह पे भरोसा कर!


निकला जैसे ही-
अपने घर से आफताब,
, रौशनी खड़ी हुई-
गुलाब की कली पर.
मुकम्मिल नहीं थे,
रंग,
जिसके अभी तक.


फिर-
जाग गयीं फौरन,
ओस की वो बूँदें.
और,
चलने लगीं नीचे-
खुदा हाफिज,
मेरी बच्ची,
अल्लाह पे भरोसा कर!
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