पीता-पीता
पानी,
पढ़ते-पढ़ते अखबार,
और उतरता हुआ सीढियां,
मै गया था चला,
उन्हें समझाने,
और बताने.
लौटकर,
कोशिश में लगा हूँ-
उतरने की अखबार से,
पढ़ने की पानी को,
और पीने की,
सीढ़ियों को.
पढ़ते-पढ़ते अखबार,
और उतरता हुआ सीढियां,
मै गया था चला,
उन्हें समझाने,
और बताने.
लौटकर,
कोशिश में लगा हूँ-
उतरने की अखबार से,
पढ़ने की पानी को,
और पीने की,
सीढ़ियों को.
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कभी कभी किसी को समझाना भी उल्टा पड़ जाता है,बेहद ही सुंदर रचना।
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