हो जाता है,
कितना अर्थहीन, तुच्छ और अप्रासंगिक,
खाया हुआ,
पिछले तीस सालों का,
भोजन भरपेट,
या दोस्तों-मित्रों का साथ,
ऊंचे-नीचे, टेढ़े-सीधे रास्तों पर,
और वह हर एक पल,
जो आया हमारी जिंदगी में,
एक खुशी नयी लेकर?
जब नहीं मिलता,
बस एक दिन,
खाने को,
या होते हैं व्यस्त मित्र,
कभी अपनी उलझनों में,
और सुन लेते हैं हम,
कोई बात मुसीबत की,
क्यों? क्यों?? क्यों???
कहाँ और क्यों है गड़बड़?
भोजन, मित्रों, खुशियों में,
या हमारा ही ...
ढीला है कोई पेंच?
---
कितना अर्थहीन, तुच्छ और अप्रासंगिक,
खाया हुआ,
पिछले तीस सालों का,
भोजन भरपेट,
या दोस्तों-मित्रों का साथ,
ऊंचे-नीचे, टेढ़े-सीधे रास्तों पर,
और वह हर एक पल,
जो आया हमारी जिंदगी में,
एक खुशी नयी लेकर?
जब नहीं मिलता,
बस एक दिन,
खाने को,
या होते हैं व्यस्त मित्र,
कभी अपनी उलझनों में,
और सुन लेते हैं हम,
कोई बात मुसीबत की,
क्यों? क्यों?? क्यों???
कहाँ और क्यों है गड़बड़?
भोजन, मित्रों, खुशियों में,
या हमारा ही ...
ढीला है कोई पेंच?
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Bahut khoob ... Lajawab ..
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